क्या खूब समा था
इश्क़ के महीने में - इश्क़ जवां था
मौसम के थे नजारे
आंखों के थे इशारे
बातों में कशिश थी इतनी
लहजे में तपिश थी इतनी
जिस्म था - आग थी
हर छुअन में एक धुआं था
हसीना थी कमसिन
दीवाना जवां था
इश्क़ के महीने में इश्क़ भी जवां था
.....ऐसे ही थे एहसास हमारे.....